नारी देह से परे भी कुछ है

Mind and Soul

बुद्धि, युक्ति, व्यंजना
करे जो गूढ़ मंत्रणा
वो सूर्य सी प्रदीप्त है
नहीं कपोल कल्पना।

ललाट उच्च, नेत्र शील
ज्ञान सिंधु है भरा
अधर कमल से दीखते,
हैं बोलते खरा-खरा
हृदय पुनीत भाव से
गृहस्थ धाम संजना
वो सूर्य सी प्रदीप्त है
नहीं कपोल कल्पना।

वो शुभ्र है या श्याम है
नहीं वो मात्र चाम है
वो योग्य किन्तु सौम्य है
समर्थ शक्तिवान है
सुकर्मीणी, तपोमयी
प्रकाश पुंज ज्योत्सना
वो सूर्य सी प्रदीप्त है
नहीं कपोल कल्पना
नहीं कपोल कल्पना।।

प्रीति त्रिपाठी
नई दिल्ली
(यह इनकी मौलिक रचना है)

 

(आवरण चित्र- सत्यम द्विवेदी)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *