देह के सौजन्य से विरहिन सरीखा रूप पाऊँ

रात्रि की निस्तब्धता में, चाँदनी के द्वार जाऊँ सूर्य के मनुहार में फिर से प्रभाती राग गाऊँ शून्य की मानिंद, जीवन फिर उसी से हार के धमनियों में क्षोभ बहता, चक्षु सावन वारते देह के सौजन्य से विरहिन सरीखा रूप पाऊँ सूर्य के मनुहार में फिर से प्रभाती राग गाऊँ गीत लिखने की तपस्या, फिर […]

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है नहीं आनंद किंचित रात बीती, धैर्य जाये

सुप्त धड़कन, क्षीण तन मन वेदना से कसमसाये है नहीं आनंद किंचित रात बीती, धैर्य जाये भावना का ज्वार फूटे, गीत बन के बह चले भोर में चन्दा चला है सूर्य से मिल के गले इस घड़ी,उनको बुला दो हिय यही संगीत गाये सुप्त धड़कन, क्षीण तन मन वेदना से कसमसाये लाज से आरक्त मुख […]

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कंटकों में भी तुम्हारी प्रीत का मधुमास है

मुक्त सारे बंधनों से आज ये आकाश है मिट गये किन्तु परंतु,दृढ़ हुआ विश्वास है चाँद की शीतल निशा में ख्वाब पोसे जायेंगे भोर की शुभ अरुणिमा में आपका आभास है मिट गये किन्तु परंतु, दृढ़ हुआ विश्वास है देह से वैराग्य तक तुमको सदा धारण किया कंटकों में भी तुम्हारी प्रीत का मधुमास है […]

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नारी देह से परे भी कुछ है

बुद्धि, युक्ति, व्यंजना करे जो गूढ़ मंत्रणा वो सूर्य सी प्रदीप्त है नहीं कपोल कल्पना। ललाट उच्च, नेत्र शील ज्ञान सिंधु है भरा अधर कमल से दीखते, हैं बोलते खरा-खरा हृदय पुनीत भाव से गृहस्थ धाम संजना वो सूर्य सी प्रदीप्त है नहीं कपोल कल्पना। वो शुभ्र है या श्याम है नहीं वो मात्र चाम […]

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ब्याहता

तन से गृहस्थन, मन से विरागी कभी चाह उसमें नहीं कोई जागी। हर दिन सबेरे दबे पाँव उठना आँखों के सपनों का चूल्हे पे तपना गर्मी या सर्दी ना महसूस करना सब्ज़ी के टुकड़ों सा चुपचाप कटना नहीं उसको फुरसत, रहे भागी-भागी कभी चाह उसमें नहीं कोई जागी। बिस्तर की सिलवट मन पे छपी है […]

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मौन हूँ, अनभिज्ञ नहीं

‘मौन हूँ, अनभिज्ञ नहीं’, ये करुण कथायें रहने दो मैं स्वयंसिद्ध जीवट नारी, निर्बाध गति से बहने दो। मैं सृजनशक्ति, नित कर्मशील अन्वेषा हूँ, मैं बुद्धिमती अभिमान रहित, मैं स्नेहसिक्त दुर्गा भी मैं, मैं पार्वती अन्तस में मेरे प्रश्न कई, अब प्रश्न मुझे भी करने दो मैं स्वयंसिद्ध जीवट नारी, निर्बाध गति से बहने दो […]

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