माँ

Mind and Soul

माँ अनगढ़ सी खुद रहती, पर सुंदर गढ़े तस्वीर।
गीत बनाती जीवन के, कर कितने ही तदबीर।।

माँ की लोरी गीता है, और है रामायण की बात।
दुख बच्चों का दूर है करती, करे प्रेम बरसात।।

इनकी डांँट औ थपकी में है, जीवन भर का सार।
मांँ के आँचल में है सोता, यह सारा संसार।।

तपती सहरा की बदरी यह, धूप में छायादार।
कदम-कदम पर माँ ही तो,रखती हमें सँवार।।

मांँ तुलसी और नीम भी है, करती सब उपचार।
पग के सारे कांँटे चुनती, फूलों की बौछार।।

मांँ बच्चों पे कर देती है, तन मन सब न्यौछावर।
माँ से बढ़कर कोई नहीं, करता इतना प्यार।।

माँ धरती सी हरित रागिनी, सूर्य किरण की आस।
बचपन का है माँ का डिठौना, गुड़ की डली मिठास।।

ज्योति नारायण
हैदराबाद (तेलंगाना)

(यह इनकी मौलिक रचना है)

(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)

 

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