ज्योति नारायण की कविता

नारी का एक सुन्दर रूप जल की तरह सूर सरिता कूल है तू , सलिल सुचिता संचिता, नीर है और क्षीर भी है, धीर वीर सी सविता । बह रही अच्छुण धरा जो, वो ही है तू अमरता, गिरि शिखर को लाँघती, कहीं धार धार सी धारिता । जागृति अध्याय प्रथम तू, चेतना चैतन्यता, और […]

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ज्योति नारायण की रचना- सुरमई

कर रहा है सफर सौरभी गुलमोहर सुरमई शाम भी आज जाये ठहर मैं निशा के पहर देखती थी डगर खिड़की पे खड़ा चाँद आया नजर करके बातें उसे भी बुलाया है घर बन के मितवा तभी भर लिया हाथ धर प्रीत मन में पली खिल गया फिर बहर मौजे तूफां उठा है दिल के सगर […]

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ज्योति नारायण की दो कविताएँ

दीप हमने है जलाया दीप हमने है जलाया ओ सजन तेरे लिए। देहरी अँगना है ‌सजाया ओ सजन तेरे लिए।।२ प्रेम की यह शुभ्र ज्योति हो उजासित पथ तुम्हारा दीपिका की मल्लिका सी भर सके सुख सौख्य सारा। यह हृदय हमने बिछाया ओ सजन तेरे लिए……। स्नेह का दीपक जलाया ओ सजन तेरे लिए।।२ दीप […]

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ज्योति नारायण की रचना- बेटियाँ

बेटियाँ दिल के करीब रहती हैं। सुख दु:ख में शरीक रहती हैं। माँ की मूरत में ये ही ढलती हैं। ममता की सूरतों में पलती हैं। प्रसव की पीड़ा जो माँ ने सही वही यह धरती लिये चलती हैं। बीज को कोख में लहू देतीं फिर लगा छातियों से रहती हैं। कभी किसी से न […]

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ज्योति नारायण की रचना- फेंका कंकर ताल में

फेंका कंकर ताल में, टूटा जल का मौन। लगी पूछने हर लहर, तट पर आया कौन। अंतस में शतदल खिले, गाये मन ने गीत। सौरभ बिखरा प्रेम का, मिला मुझे मनमीत। फिर से हैं बेचैन ये, कज्जल पूरित नैन। दिन का नहीं सुकून है, नहीं रात का चैन। बरसीं बूँदे प्रेम की, भीग रहा हर […]

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नवरात्रि पर माता की स्तुति

नव नव दुर्गा हे नव नव रूपा नव नव हे शत शांत स्वरूपा शैलपुत्री हे हिम हिमानी महामाया हे माँ महारूपा जगदम्बिका हे माँ अम्बालिका शक्तिपुंंज माँ हे शतरूपा त्रिपुर सुन्दरी माँ विंध्यवासिनी सविता सुचिता हे माँ सविरूपा माँ भवानी हे शिव-शिवाणी ब्रह्माणी लक्ष्मी श्री रूपा अखिल निरंजनी शारदे माँ हे ज्ञानेश्वरी संज्ञान स्वरूपा हे […]

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जितिया व्रत पर खास पेशकश- माँ की वसीयत और तीन अन्य कविताएँ

माँ के लिए जितिया व्रत (या जीवित्पुत्रिका व्रत) से बड़ा कोई व्रत नहीं होता। आज इस व्रत के मौके पर पेश हैं माँ के कुछ भाव, जो देश की कई कवयित्रियों ने पेश किये हैं। वसीयत छोड़ जाऊँगी वसीयत में अपने संग्रहित किताबों के अनमोल खजाने बेटियों के लिये, अपने तीज-त्योहार अपने संस्कार अपनी परम्परा […]

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खेतों की मेड़ों पर ये चली है, तब कहीं जाके ये माँ सी ढली है

छू लिया है जिसने हिमालय उस पर्वतराज का है ताज हिन्दी। कंठ है, सुर है, है साज हिन्दी, है करोड़ों की आवाज हिन्दी।। खेतों की मेड़ों पर ये चली है तब कहीं जाके ये माँ सी ढली है। इसकी पहचान हर एक डगर है, इसकी पहचान हर एक गली है।। तेलुगू, कन्नड़, तमिल, बांग्ला, मराठी, […]

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एक परी मेरे मन में सोती भी है, रोती भी है

एक परी मेरे मन में सोती भी है, रोती भी है। और उम्र सपनों की गठरी, ढोती भी है, खोती भी है।। मन का मेरे हाल ना पूछो, हाल हुआ बेहाल ना पूछो, लहर-लहर लहराती नदियाँ, हैं कितनी उत्ताल न पूछो। जीवन के तटबंधों तक आ, मुझको वही भिगोती भी है। एक परी मेरे मन […]

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अमर शहीदों की धरती को नमन करो

अमर शहीदों की धरती को नमन करो बलिदानों का बीज भूमि में वपन करो। करो प्रतिज्ञा तुम इसके सम्मान की वह रण छंगी वाना तुम भी वरण करो।। यह परंपरा है आजस्त्र पुरखों वाली यह गाथा है बलिदानों अमरों वाली। नई चेतना इसी गर्भ से जन्मेगी गीतों की अंतरध्वनि है वीरों वाली। अमर शहीदों की […]

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