ज्योति नारायण की कविता

Mind and Soul

नारी का एक सुन्दर रूप
जल की तरह

सूर सरिता कूल है तू , सलिल सुचिता संचिता,
नीर है और क्षीर भी है, धीर वीर सी सविता ।

बह रही अच्छुण धरा जो, वो ही है तू अमरता,
गिरि शिखर को लाँघती, कहीं धार धार सी धारिता ।

जागृति अध्याय प्रथम तू, चेतना चैतन्यता,
और दिवाकर अर्द्धय तू ही,तू मूल की संचियता।

शांत चित्त निशांत आगर, हो प्रलय की गहरनता ,
मुक्त तेरी है प्रवाहनी, वहीं बंदी सी तू बंधिता ।

रेत कंटक पे है बहती, वो तेरी है समरता,
है प्रभंजन गति वो तुझ में, यामिनी सी मदरिता ।

प्रीत की भरती पुहुप है, तू ही है वह मधुरता ,
पलक पाँवड़े नेह सिंचित, तू ही इड़ा सी जीविता ।

नीति रीति संग लिये तू, अखंड शिवा की रमणिता,
शापित युगों से होके भी, तू ही मृदु स्पंदिता ।

घोर अनल उर में छुपाये, दामिनी दाहक जरा
घन गहर की हो विकलता,क्षिति मिलन संप्रिता ।

तू धरा की गर्भ पुलक है, ये तेरी विशालता ,
कोर के कण कण में सिंचित, सबकी तू प्रतिबिंबिता।

दान इरा वरदान देती,तू हृदय की पवित्रता ,
नील छांँव की तू अचल है, बूँद-बूँद सी पोषिता ।

भैरवी अविनाश रुपा,तू ही करुणामयी आद्रता,
त्याग तप और हो तपस्या, तू ही ओम विलोमता ।

है अचल में तू ही चल चल,पथ की तू प्राजक्ता ,
वाणी की वीणा है तू ही सावित्री सुहासिता।

ज्योति नारायण
हैदराबाद (तेलंगाना)

(यह इनकी मौलिक रचना है)

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