जितिया व्रत पर खास पेशकश- माँ की वसीयत और तीन अन्य कविताएँ

Mind and Soul

माँ के लिए जितिया व्रत (या जीवित्पुत्रिका व्रत) से बड़ा कोई व्रत नहीं होता। आज इस व्रत के मौके पर पेश हैं माँ के कुछ भाव, जो देश की कई कवयित्रियों ने पेश किये हैं।

वसीयत

छोड़ जाऊँगी वसीयत में
अपने संग्रहित किताबों के
अनमोल खजाने
बेटियों के लिये,
अपने तीज-त्योहार
अपने संस्कार अपनी परम्परा
छोड़ जाऊँगी पुत्रवधू के लिये।
अपने हाथों के कँगन
दे जाऊँगी नाती बहू के लिये
मेरा नाम लेकर पहनायेगा
मेरी यादों को वो
अपने ह्रदय मे सजायेगा।
कुछ रेशमी साड़ियाँ
दे जाऊँगी नातिन को
अपने गालों से लगा
रेशम की स्निग्धता में
महसूस करेगी मेरा दुलार।
पोते-पोती को दूँगी
मेरे गीतों मे बसा
मेरा अक्ष्क्षुण प्यार
घर के बालकों को दूँगी
आँचल का सारा स्नेह-दुलार,
दोस्तों के लिये मेरी
मधुर यादें और
जीवनसाथी को
अगले सात जन्मों का
गठबंधन और अधिकार।।

नीलिमा मिश्रा
काँकेर (छत्तीसगढ़)

काजल

आँखों में, माथे पर, गाल पर,

कान के पीछे, छाती पर

दोनों हथेलियों और पैर के तलुओं में

काजल लगा कर माँ निश्चिन्त हो गयी कि

बच गयी बेटी हर बला से।

भोली माँ का भोला सा विश्वास

नहीं सुन पाता

नियति का क्रूर अट्टहास।

मधु सक्सेना
रायपुर (छत्तीसगढ़)

 

आशीर्वाद

सावन-भादों सा झरे, माता श्री का प्यार।
जग में माँ आशीष सी, कब होती बौछार।।

नेह मिहिर बरसात से, नाचे मन का मोर।
मात नेह आशीष से, हर्षे छल-छल लोर।।

माँ की झिड़की में मिले, आशीषों का ठौर।
पर माँ के सम्मान में, रहा न अब वो दौर।।

किरण-किरण आशीष ले, उतरी है नित भोर।
घर-आँगन उल्लास भर, पोछें सब की लोर।।

माँ शारद रखना सदा, वरदहस्त मुझ भाल।
भर झोली आशीष से, रक्खूँ दीपक बाल।।

ज्योति नारायण

हैदराबाद (तेलंगाना)

 

हो जाना चाहती हूँ इन सबकी माँ

चमकती आँखें
खिलखिलाता चेहरा
सबको देखना चाहती हूँ
खुशहाल…..

नहीं देख पाती
मायूस चेहरे पर
चिन्ता और दर्द की लकीरें
बचपन की प्रौढ़ावस्था…

इसीलिए तो…
उन नवजात बच्चों को
जिन्हें बिलखता छोड़ गयी माँ
वो किशोर बच्चे,
जो टूट गये माँ के
एकाएक चले जाने से ….

उनकी माँ हो जाना
चाहती हूँ …
मेरे लिए ये ख्याल
अजीब बिलकुल नहीं,
क्योंकि जानती हूँ
बच्चे को प्रकृति की
व्यवस्था सब दे देगी
पूरा भरण-पोषण…..

पर नहीं दे सकेगी तो
बच्चे के मस्तिष्क से
निकला वो महीन रेशा,
संवेदनाओं का……

जो माँ के न होने पर भी
बढ़-बढ़ कर ढूँढता है
वो रेशा
जिसका दूसरा सिरा
माँ के मस्तिष्क में ही
मिलेगा ….

और तभी
बच्चे को सुकून मिलेगा….
इसीलिए इन सबकी माँ
हो जाना चाहती हूँ

उन ढूँढती हुई शिराओं तक
पहुँच जाना चाहती हूँ
अपनी शिराओं के साथ,
आखिर
मै भी तो प्रकृति की
वही व्यवस्था हूँ ना
जिसका नाम है
माँ ……

वर्षा रावल
रायपुर (छत्तीसगढ़)

 

 

1 thought on “जितिया व्रत पर खास पेशकश- माँ की वसीयत और तीन अन्य कविताएँ

  1. जीउतिया पर माताओं का स्नेह शब्दों के रुप में छलका है, अत्यंत ही सराहनीय एवं प्यारा है।

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