ज्योति नारायण की रचना- सुरमई

Mind and Soul

कर रहा है सफर
सौरभी गुलमोहर

सुरमई शाम भी
आज जाये ठहर

मैं निशा के पहर
देखती थी डगर

खिड़की पे खड़ा
चाँद आया नजर

करके बातें उसे भी
बुलाया है घर

बन के मितवा तभी
भर लिया हाथ धर

प्रीत मन में पली
खिल गया फिर बहर

मौजे तूफां उठा है
दिल के सगर

सीप में ज्यूँ पले
मोतियों का गहर

बिखरे गेसू रहे
और बहके कज्जर

यामिनी पाश में
बँध गई हर लहर

चाँदनी यूँ झरी
हो गई फिर सहर

ज्योति नारायण
हैदराबाद (तेलंगाना)
(यह इनकी मौलिक रचना है)

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