ज्योति नारायण की दो कविताएँ

Mind and Soul

दीप हमने है जलाया

दीप हमने है जलाया
ओ सजन तेरे लिए।
देहरी अँगना है ‌सजाया
ओ सजन तेरे लिए।।२

प्रेम की यह शुभ्र ज्योति
हो उजासित पथ तुम्हारा
दीपिका की मल्लिका सी
भर सके सुख सौख्य सारा।
यह हृदय हमने बिछाया
ओ सजन तेरे लिए……।
स्नेह का दीपक जलाया
ओ सजन तेरे लिए।।२
दीप हमने है जलाया..।

शिखा ये झिलमिल सी जलती
हरती तम सौदामिनी सी।
छवि अमित अंकित है करती
पल मधुर मधु मालिनी सी।
हर्ष का अंकुर उगाया
ओ सजन तेरे लिए।
नेहा का दीपक जलाया
ओ सजन तेरे लिए।।२
दीप हमने है जलाया..।

आज मन की है ईषा ये
भरुँ प्रेम ज्योति अपरिमित।
मेरे जीवन का ये पल छिन
तुझ में तुझ तक ही समर्पित।
पुलक-पुलक फिर मन हर्षाया
ओ सजन तेरे लिए।
प्रेम का दीपक जलाया
ओ सजन तेरे लिए।।२
दीप हमने है जलाया…..।

ओ सजन तेरे लिए
ओ सजन तेरे लिए।।
दीप हमने…….

 

दीप लौ

तमस की चादर जब तनती
मिटाने दीप लौ जलती
उजाला पथ में है करना
चमक अकूत सा भरती

घिरी आवर्त में फिर भी
शिखा है झूमती रहती
निडर हो नन्हीं सी बाला
अंधेरा चीर कर हँसती

अमीरों के कंगूरे पर
कणी हीरे की ये लगती
जले, जब कुटी-मुंडेर पर
सत्य की ज्योति है दिखती

करें न भेद यह कोई
उजाला एक सा करती
आती जब रात अमावस तो-
सितारों सी है ये लगती

पवन संग होड़ यह करती
भक्ति की ये शिखा जलती
कर्म का दे संदेशा ये
धर्म के पथ पर यह चलती

दर्प नही दीपिका को है
झिलमिलाती मुस्काती है
सत्य सुंदर शिवम की लौ
प्रीत देती हुईं जलती

असत्य पर सत्य की विजय
ले के आता है पर्व ज्योति
सीख लो तुम भी कुछ मानव
ये पावन दीपशिखा कहती

ज्योति नारायण
हैदराबाद (तेलंगाना)

(ये इनकी मौलिक रचनाएँ हैं)

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