ज्योति नारायण की रचना- फेंका कंकर ताल में

फेंका कंकर ताल में, टूटा जल का मौन। लगी पूछने हर लहर, तट पर आया कौन। अंतस में शतदल खिले, गाये मन ने गीत। सौरभ बिखरा प्रेम का, मिला मुझे मनमीत। फिर से हैं बेचैन ये, कज्जल पूरित नैन। दिन का नहीं सुकून है, नहीं रात का चैन। बरसीं बूँदे प्रेम की, भीग रहा हर […]

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वर्षा रावल की कविता- अंधी मछली

कौतूहल से देखते हैं आने जाने वाले मोहित होते, सौंदर्य से चमकती काया आकर्षण में बाँध लेती अनायास …. अँधेरे ने अँधेरे में रखा उसे कि आँखों में गज़ब का सम्मोहन होता है… कि देखना उसका अधिकार है कि नहीं वो गांधारी जो बाँध ले आँखों में पट्टियाँ …. क्योंकि ये खूबसूरत चमकीली देह की […]

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आकाश की नीलिमा में चाँद मधुकलश लिए

आकाश की नीलिमा में, पूनो का चाँद मधुकलश लिए, शुभ्र चंद्रकिरणों की, हो रही वर्षा, देखो अभिमंत्रित प्रज्ञा सी , ज्योत जली, भुवनमोहिनी की आभा लिये, ताल मे सरोज खिली, सुरेश इन्द्र के प्रांगण में, प्रार्थना लिये, देवों की कामना फली, वृन्दावन की रजनी में, रेणूतट पर सौन्दर्य मल्लिका, राधा के मीनाक्षी नयन, चपल हो […]

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विद्या भंडारी की रचना- समय

वक्त के समंदर में आये कई सिकन्दर और कई डूब गये कोई बचा नहीं पाया। समय के बेलगाम घोड़े को कोई जंजीर से बाँध नहीं पाया। वक्त की आँधियाँ कितना कुछ लील गयीं कोई रोक नहीं पाया। शहंशाह हो या वैज्ञानिक समय के बदलाव के आगे ठहर न पाया। वक्त की पुकार ब्रह्मांड की पुकार […]

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ये मैंने किसको सज़ा दे दी

आज सुबह-सुबह एक चिड़िया (पंडुक) मेरी बालकनी में आयी, जिसके बारे में आप सभी जानते होगें। उसकी वाणी ने जैसे मन में करुण रस का संचार कर दिया। इस चिड़िया के कूकने के विषय में एक किस्सा प्रचलित है। मेरे हम-उम्र लगभग हर किसी ने अपने बचपन में अपनी दादी-नानी से ये किस्सा जरूर सुना […]

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नवरात्रि पर माता की स्तुति

नव नव दुर्गा हे नव नव रूपा नव नव हे शत शांत स्वरूपा शैलपुत्री हे हिम हिमानी महामाया हे माँ महारूपा जगदम्बिका हे माँ अम्बालिका शक्तिपुंंज माँ हे शतरूपा त्रिपुर सुन्दरी माँ विंध्यवासिनी सविता सुचिता हे माँ सविरूपा माँ भवानी हे शिव-शिवाणी ब्रह्माणी लक्ष्मी श्री रूपा अखिल निरंजनी शारदे माँ हे ज्ञानेश्वरी संज्ञान स्वरूपा हे […]

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आज औरत

खिज़ा की रुत में पलाश बनकर खिला भी करती है आज औरत। लगा के पहरे बला के ऊपर दुआ भी करती है आज औरत।। चले जो वश तो बचा के रख ले वो अपनी साँसें किसी की खातिर। यूँ ज़र्द पत्तों को अश्क देकर हरा भी करती है आज औरत।। न कोई जादू तिलिस्म कोई […]

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जितिया व्रत पर खास पेशकश- माँ की वसीयत और तीन अन्य कविताएँ

माँ के लिए जितिया व्रत (या जीवित्पुत्रिका व्रत) से बड़ा कोई व्रत नहीं होता। आज इस व्रत के मौके पर पेश हैं माँ के कुछ भाव, जो देश की कई कवयित्रियों ने पेश किये हैं। वसीयत छोड़ जाऊँगी वसीयत में अपने संग्रहित किताबों के अनमोल खजाने बेटियों के लिये, अपने तीज-त्योहार अपने संस्कार अपनी परम्परा […]

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महँगाई पर लिखने वाला क्या सच में निर्धन होता है

क्या करुणा को गाने वाले जीवन में व्याकुल होते हैं? क्या हास्य विधा के महारथी हँसते ही जगते सोते हैं? क्या ओज विधा के लेखक बंदूकें लेकर घर जाते हैं? क्या राणा को गाने वाले चेतक को सैर कराते हैं? महँगाई पर लिखने वाला क्या सच में निर्धन होता है? जो बात चिरागों की करता […]

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जज्बात-ए-दिल हैं ऐसे कि रिश्ते कम रखती हूँ

जज्बात-ए-दिल हैं ऐसे कि रिश्ते कम रखती हूँ। अब हर बात में हाँ कहना छोड़ दिया मैंने, अब तो ना कहने का हुनर भी अपने संग रखती हूँ। जज्बात-ए-दिल हैं ऐसे कि रिश्ते कम रखती हूँ। किसी को दर्द देने का इरादा नहीं है मेरा, लेकिन बात सही है, तो कहना भी है जरूरी, ऐसे […]

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