जज्बात-ए-दिल हैं ऐसे कि रिश्ते कम रखती हूँ

Mind and Soul

जज्बात-ए-दिल हैं ऐसे कि रिश्ते कम रखती हूँ।
अब हर बात में हाँ कहना छोड़ दिया मैंने,
अब तो ना कहने का हुनर भी अपने संग रखती हूँ।
जज्बात-ए-दिल हैं ऐसे कि रिश्ते कम रखती हूँ।

किसी को दर्द देने का इरादा नहीं है मेरा,
लेकिन बात सही है, तो कहना भी है जरूरी,
ऐसे मैं कहूँ या नहीं, इसके लिए खुद से भी झगड़ती हूँ।
जज्बात-ए-दिल हैं ऐसे कि रिश्ते कम रखती हूँ।

मुझे बहुत नरम दिल या भोला समझ ना ले कोई,
इसलिए तीखे लब्जों का खंजर संग रखती हूँ,
मेरी बातें लगती हैं बुरी, दो टूक कहना जो पसंद करती हूँ।
जज्बात-ए-दिल हैं ऐसे कि रिश्ते कम रखती हूँ।

मुट्ठी से फिसल रहा है वक्त हर एक दिन,
इसलिए पल-पल की यादें सँजो के दिल में रखती हूँ,
मुझे समझोगे एक दिन यही उम्मीद है तुमसे,
इसलिए तुम्हीं से हाल-ए-दिल बयां मैं करती हूँ।

शुभ्रा तिवारी
गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)
(यह इनकी मौलिक रचना है)

 

(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)

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