ये मैंने किसको सज़ा दे दी

Mind and Soul

आज सुबह-सुबह एक चिड़िया (पंडुक) मेरी बालकनी में आयी, जिसके बारे में आप सभी जानते होगें। उसकी वाणी ने जैसे मन में करुण रस का संचार कर दिया। इस चिड़िया के कूकने के विषय में एक किस्सा प्रचलित है। मेरे हम-उम्र लगभग हर किसी ने अपने बचपन में अपनी दादी-नानी से ये किस्सा जरूर सुना होगा। अगर आप पूर्वी उत्तर प्रदेश के वासी हैं तो निश्चित तौर पर आपने यह सुना होगा। हम पशु-पक्षियों की भाषा तो नहीं समझ सकते, लेकिन हम उस कहानी या किस्से के माध्यम से मिलने वाली सीख को हम शायद तब नहीं समझ पाए कि हमारे बड़े- बुज़ुर्ग कितनी आसानी से हमारे अंदर दया, करुणा आदि भावों का संचार करते तथा क्रोध, ग्लानि आदि से बचाने का प्रयास करते, जो आज समझ में आ रहा है। तो उस चिड़िया के कूकने के विषय में कुछ किस्सा यूं है-

एक चिड़िया अपनी ही भाषा में करुण स्वर में न जाने क्या कहती है और उसे हमने अपने भाव में रूपांतरित कर लिया। किस्से के अनुसार चिड़िया पश्चाताप में कहती है- “हम के के दगलीं?” (मैंने किसको सज़ा दे दी?), दरअसल चिड़िया रोज कहीं से महुआ के फूल लाती है और उसे एकत्रित करती है, उसके नन्हें बच्चे अपने घोंसले में अपनी माँ का इंतजार करते रहते हैं। वह चिड़िया प्रतिदिन फूल लाती है और उसे एकत्रित करती रहती है, इस तरह कुछ दिन बीत जाते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि महुआ के फूल सूख कर कम दिखने लगते हैं और यही चिड़िया के साथ भी हुआ। उस चिड़िया (पंडुक) को लगा कि उसके लाए हुए फूल उसके बच्चे फेंक रहे हैं जिससे फूल मात्रा में कम हो गये। इस बात से चिड़िया को बहुत क्रोध आता है और वो अपनी चोंच से मार-मार कर अपने बच्चों की हत्या कर देती है।

इस घटना के बाद वह फिर फूल लाती है तथा उसकी रखवाली करती है, तब उसे समझ में आता है कि फूल सूख कर कम हो जा रहे हैं, तब वह अपने बच्चों की हत्या के पश्चाताप की अग्नि में जलने लगती है और कहती है- “हम के के दगलीं?” (मैंने किसको सज़ा दे दी?)।

इस कहानी से यही सीख मिलती है कि हमें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए, तथ्य को पहले समझना चाहिए, अन्यथा आवेश में आकर हम अपना ही नुकसान करते हैं और हमारे पास पछतावे के सिवा कुछ भी नहीं रहता। आजकल हम अक्सर समाचारपत्रों के माध्यम से ऐसी घटनाएँ पढ़ते रहते हैं कि- पति ने क्रोध में पत्नी और बच्चों को कुल्हाड़ी से काटा या अमुक व्यक्ति नेअपने पूरे परिवार को गोलियों से भूना इत्यादि। ऐसी सारी घटनाएँ हमारे क्रोध का ही तो परिणाम हैं।आज हम इन्हीं बातों (आत्मनियंत्रण, आत्मसंयम, क्रोध, मोह, लोभ ) के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिए सत्संग में जाते हैं, किसी भी ढोंगी बाबा के बहकावे में आ जाते हैं, मोटिवेशनल स्पीकर्स पर पैसे खर्च करते हैं।

यदि हम सीखना और समझना चाहें तो हमारे आसपास के वातावरण और अपने बड़े बुजुर्गों के पास बैठकर भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। दया, करुणा, प्रेम आदि गुणों को सीख कर अपने जीवन में आत्मसात कर हम अपने जीवन की राह को सरल और खुशहाल बना सकते हैं।

स्मृति

वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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