माँ की ममता कभी किसी में भेद नहीं करती है,
वह तो जब चाहे किसी पर भी बरस सकती है।
माँ नहीं कहती कि डॉक्टर बनो या इंजीनियर,
माँ के मुख से तो बस ‘सुखी रहो’ की गंगा बहती है।
दिल में माँ के हम ही रहते, हम ही तो बसते हैं,
जैसे हम भी माँ से प्यार बहुत करते हैं।
माँ को ही तो भगवान का दर्जा दिया गया है,
माँ की ममता का भगवान ने प्रसाद हमको दिया है।
ढाल भी माता, तलवार भी माता,
हर गलती पर माफ करने वाली महान भी माता।
भगवान की पूजा करते हो,
पर क्या कभी माँ के पास बैठ कर उनसे प्यार किया है।
मंदिर बहुत गये हो,
लेकिन उससे तुमने क्या स्वर्ग हासिल कर लिया है।
माँ को प्यार से माँ कह कर पुकारो,
बिना पुण्य के ही स्वर्ग पा जाओगे।
माँ को दो प्यारी सी झप्पी,
जीते जी ही तुम तर जाओगे।
जा कर कहो कि माँ हो तुम बहुत अच्छी,
अपने सारी गलतियों से मुक्ति पा जाओगे।
(“बच्चों का कोना” के लिए यह कविता भेजी है वैष्णवी तिवारी ने)
(यह इनकी स्वरचित कविता है)