तस्वीरें… एक जमाना था, जब तस्वीर, कैमरा, स्टूडियो आदि के नाम से ही हमारे चेहरे पर एक नूर सा छा जाता था। तस्वीरों का शौक यूँ तो सबको ही होता है, लेकिन महिलाओं में यह शौक खास तौर पर देखा जाता है। यह सच कल भी था और आज भी है, बस उस शौक को पूरा करने का तरीका आज बदल गया है। पहले बेटी जब ससुराल से विदा होती थी, अपने साथ एक बड़ा सा एलबम लाती थी, उस एलबम को दिखाने में जितनी खुशी उस युवती को मिलती थी उससे कहीं ज्यादा उसे देखने वाले में उत्सुकता होती थी। कितना अजीब था ना, जिन्हें हम जानते भी नहीं थे, उन्हें भी देखते थे, जैसे एलबम दिखाने वाली यह बताती कि- “फोटो में मेरी सहेली की बड़ी भाभी है” या ये “मेरी बुआ की छोटी बहू है” इत्यादि, फिर भी आनंद था।
जब कभी कोई युवती अपने मायके जाती, अपनी सहेलियों-भाभियों के साथ स्टूडियो जाने की, फोटो खिंचवाने की कितनी सारी तैयारियाँ करती। एक फोटो की तीन प्रतियाँ, वो भी हफ्ते भर बाद में फोटो मिलने की तारीख। कितने सुनहरे थे वो दिन, किसी सहेली की शादी तय हो जाने के बाद जीजा जी की फोटो दिखाओ की जिद, ससुराल आकर लगभग हर दूसरे खत में सहेली से फोटो भेजने का जिक्र, स्कूल की फेयरवेल पार्टी या यूँ कहें कि विदाई समारोह में सहेलियों के साथ यादगार फोटो खिंचवाना, नई-नई भाभी से मिलने पर बातों का सिलसिला फोटो एलबम दिखाने से शुरू करना। कितना अनूठा था ना हमारा यह फोटो प्रेम?
जब ननिहाल जाते, नाना जी के घर में श्याम-श्वेत फोटो, बड़े-बड़े लकड़ी के डिजाइन वाले फ्रेम में अपनी माँ और मामा लोगों को नाना जी या नानी के गोद में बैठे देखना। बुआ और फूफा जी की ताजमहल के सामने वाली फोटो, एक बुजुर्ग महिला एक गोल लोहे की कुर्सी पर अपने दोनों हाथ घुटनों पर रखकर बैठी हुई, हमें आश्चर्य में डाल देता कि ये हमारे पापा की दादी हैं। फोटो में कोई बनावट नहीं, जैसे ही कैमरामैन ने रेडी और स्माइल कहा, फोटो खिंच गई।
मुझे तो इससे जुड़ा एक रोचक किस्सा भी याद आ रहा है जो मेरी माँ ने अपनी दादी के विषय में बताया था। जब उनकी दादी को बहुत मनाने के बाद फोटो खिंचवाने के लिए तैयार किया गया तो उन्होंने स्टूडियो की लाइट ऑन होते ही पूछा, इसमें करंट तो नहीं लगेगा। सबने समझाया कि सिर्फ अच्छे प्रकाश के लिए इसे जलाया गया है, तब उन्होंने अपनी फोटो खिंचवाई।
शादियों में तो फोटो का बहुमूल्य योगदान था, शादी के नाम पर लड़कियों को फोटो खिंचवाने के लिए तैयार करना, फिर स्टूडियो में एक बड़े से गुलदस्ते पर अपने कुहनी टिकाते हुए लड़की की शर्मीली सी फोटो। हमारे यहाँ तो शादियों में बारात आने पर जैसे ससुर, जेठ, देवर को लक्ष्य करके गाने गाए जाते हैं, वैसे ही” कैमरावाले” के नाम से भी गाना गाया जाता है। घराती, कैमरा वाले का स्वागत भी बड़े आदर भाव से करते थे। समय बदला, तकनीक बदली, उसके साथ फोटो खिंचवाने का तरीका भी बदला, और फोटो के प्रति लोगों का नजरिया भी बदला। अब कोई अपनी फोटो किसी को भेजने में डरता है, कोई भी लड़की अपनी फोटो किसी को देने में हिचकती है। उसके पीछे कारण है तकनीकों का गलत उपयोग या यूँ कहें तो उस फोटो का दुरुपयोग। किसी भी सीधे-सादे फोटो को किस तरह प्रस्तुत कर दिया जाए, यह अब एक सिरदर्द बन चुका है। महिलाओं के चरित्र का प्रमाण पत्र देने के लिए कुछ विकृत मानसिकता के लोग इसे ब्रह्मास्त्र के रूप में प्रयोग करने लगे हैं जो कि गलत है। आज सोशल मीडिया के जमाने में प्रोफाइल पिक्चर, डीपी, स्टेटस ,पोस्ट इस तरह के अजीबो-गरीब झगड़े, फोटो और उसके गलत उपयोग से ही हो रहे हैं।
ऐसी गतिविधियों से खुद भी बचें
और दूसरों को भी बचाएँ
आइए इस प्यार भरे एल्बम में
एक फोटो और सजाएँ।
स्मृति
वाराणसी (उत्तर प्रदेश)