क्या है पितृ पक्ष का महत्व, कैसे करें पितरों को प्रसन्न

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हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्राद्ध पक्ष यानि पितृ पक्ष प्रारंभ हो चुका है। यह पक्ष 15 दिन का होता है। इस अवधि में हम अपने पितरों यानि अपने पूर्वजों, जो अब अपने शरीर के साथ हमारे बीच उपस्थित नहीं हैं, की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते हैं। तर्पण का अर्थ है किसी प्यासे को पानी पिलाना। जिस प्रकार प्यासा व्यक्ति पानी पीकर तृप्त हो जाता है, उसी प्रकार तर्पण से हमारे पूर्वज की आत्मा को तृप्ति और शांति प्राप्त होती है और वे आशीर्वाद देते हैं।

श्राद्ध पक्ष में तर्पण का काफी महत्व है। हम घर पर भी आसानी से तर्पण कर सकते हैं। घर पर तर्पण करने की विधि अत्यन्त सरल है। इसमें जनेऊ काफी महत्वपूर्ण है। जनेऊ पहन कर ही तर्पण करना चाहिए। तर्पण का समय कूतुप काल यानि मध्याह्न के बाद का होना चाहिए, अर्थात् दोपहर में 12:30 बजे के बाद का समय। तर्पण के लिए जो समय सबसे अच्छा हो, उसे कूतुप काल कहा जाता है।

तर्पण में दिशा का महत्व

शास्त्रों के अनुसार तर्पण तीन जगह पर किया जाता है पूरब में, उत्तर में और दक्षिण में। पूरब में देवताओं का तर्पण, उत्तर मुख होकर ऋषियों का तर्पण और दक्षिण दिशा में मुख करके पितरों का तर्पण किया जाता है। तर्पण के समय जनेऊ का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। देवताओं के तर्पण के समय जनेऊ सीधा रखा जाता है, जबकि ऋषियों के तर्पण के समय जनेऊ गले में माला की तरह होनी चाहिए और पितरों के तर्पण के समय जनेऊ उल्टा रखा जाता है।

क्या सामग्री चाहिए

तर्पण उन लोगों के लिए होता है, जो अब हमारे साथ नहीं है अर्थात् जो हमें छोड़ कर संसार से जा चुके हैं। जीवित लोगों के लिए तर्पण नहीं किया जाता। तर्पण के लिए ज्यादा सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए आवश्यक है एक तो शुद्ध जल और दूसरे गंगा जल। इसमें आप चंदन भी मिला सकते हैं। तर्पण के लिए कच्चे दूध का भी प्रयोग किया जा सकता है। इसमें तुलसी पत्र अवश्य डालें ,और जो समय बताया गया है उसी पर तर्पण करें तभी इसका लाभ प्राप्त होता है।

घर पर तर्पण करने का सही समय और विधि

अंगुष्ठ और तर्जनी के मध्य होता है पितृ तीर्थ। इसी से पितरों को तर्पण किया जाता है। पितृ तीर्थ में अंगूठे का विशेष स्थान होता है, उसी स्थान से तर्पण किया जाना चाहिए। तर्पण तीन बार किया जाता है, जिसको तर्पण किया जाता है उसे तर्पयामी के द्वारा तर्पण दिया जाता है।

  • सबसे पहले तो आप सदैव नहा कर ही तर्पण करें। फिर तर्पण करने के बाद फिर से नहायें।
  • तर्पण सदैव कुशा आसन पर बैठ कर ही करें।
  • यदि ग्रहण लगा हुआ है, पितृ श्राद्ध है, अमावस्या है और संक्रांति का दिन है, तो आप घर में तिल से तर्पण कर सकते हैं। अन्य दिनों में घर में तिल से तर्पण ना करें।
  • कुशा के आगे के भाग से देवताओं का तर्पण, मध्य भाग से मनुष्य का तर्पण और मूल भाग से पितरों का तर्पण करें।
  • घर में तर्पण करते समय तिल का निषेध है।
  • जब आप किसी सरोवर में, किसी बगीचे में या किसी तीर्थ स्थान पर तर्पण करते हैं, तब तिल का प्रयोग कर सकते हैं, परंतु घर पर नहीं।
  • अगर पुरुष है तो तीन बार *तस्मै ते स्वधा नमः* कहा जाता है।
  • यदि स्त्री है तो * तस्ये ते स्वधा नमः* ऐसा तीन बार कहा जाता है।

यदि आप इन सभी बातों का ध्यान रखते हैं और पालन करते हैं, तो अवश्य ही आपके पूर्वज प्रसन्न होकर आपको आशीर्वाद देंगे।

शुभ्रा तिवारी

गाजीपुर (उत्तर प्रदेश)

(आवरण चित्र- शिप्रा तिवारी)

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