खामोशी से कहना है

  हमें कर्मशील सदा  रहना है बस नदी सा बहते रहना है पथ में आये शूल या पत्थर हमें आगे सदा ही बढ़ना है अनजाने पथ पर भी राही सोच समझ कर चलना है रात जले जो दीप देहरी सुबह उसे तो बुझना है आज हैं साँसें, कल न होंगी एक दिन इसने छलना है […]

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आदिम युग का शुभारंभ

उतार फेंके हैं हमने वस्त्र लज्जा के नुकीले कर लिए हैं हमने अपने दाँत अपने नाख़ून भर ली है हिंसा अपनी शिराओं में ताकि कर सकें सामना उस शिकार का जिसने नहीं किये नुकीले अपने दाँत अपने नाख़ून, फिर भी प्रतिरोध करना जानते हैं हमे उकसाना जानते हैं नहीं देख सकते उनकी वाहवाही डरना जरूरी […]

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नारी, एक चमकीला तारा, टूट कर गिरता हुआ

नारी नारी एक शक्ति है, श्रद्धा है, जननी है, धरती है। फिर शापित क्यों है? विचलित मन से निकली है यह कविता क्या ऐसा होना उचित है? नारी बेरोशन एक चमकीला तारा टूट कर गिरता हुआ, सड़ी-गली परम्परा की लपलपाती लपटों के बीच घिरी झुलसती हुई कोई एक स्मृति, किसी सरोज की खण्डित प्रतिच्छवि। सदियों-सदियों […]

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मूल्यांकन

सतह में रहकर समुद्र की गहराई नापना उतना ही मुश्किल होता है जितना कि आकाश की परिधि नापना पर फिर भी हम कर दे देते हैं मूल्यांकन अपने चश्मे से देखकर दे देते हैं परिणाम पूरा भरोसा दिलाकर सागर की गहराई को डरावनी शक्ल में, या आकाश को भयानक रूप में भले ही फर्क नहीं […]

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उलझन नारी जीवन की

कैसी है ये उलझन, भागा-भागा फिरे है मन कर्तव्यों के जीवन में, कहीं नहीं मिले है चैन एक को पकड़ूँ, दूजा खोऊँ तकिया गीला, नित सिसकूँ रोऊँ किससे कहूँ मैं दिल की बात अपने भी सोचें, नहीं मुझमें जज़्बात। बँट गई ज़िन्दगी मेरी टुकड़ों की खुशियाँ मेरी हर कोई सही अपनी दृष्टि में गलत हूँ […]

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नसीहत

  पुरुष चाहता है अपनी नसीहतों से स्त्री को मूर्ख साबित करना। बार-बार आहत करके अपनी जीत का एहसास कराना। स्त्री के भीतर जो भी मूल्यवान है उसे तहस-नहस करना। वह संस्कारों से बँधी पिसी रहती है घुन की तरह। उसका अधिकार रिश्तों को समेट कर रखना ही है। पुरुष जानना ही नहीं चाहता कि […]

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माँ

माँ अनगढ़ सी खुद रहती, पर सुंदर गढ़े तस्वीर। गीत बनाती जीवन के, कर कितने ही तदबीर।। माँ की लोरी गीता है, और है रामायण की बात। दुख बच्चों का दूर है करती, करे प्रेम बरसात।। इनकी डांँट औ थपकी में है, जीवन भर का सार। मांँ के आँचल में है सोता, यह सारा संसार।। […]

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आपका जीवन बदल देगा बीके शिवानी (BK Shivani) का यह नजरिया, जरा अपना कर तो देखिए

अक्सर लोग बातचीत में कह देते हैं, नजरिया बदल दो, नजारे बदल जायेंगे, लेकिन इस बात का मतलब काफी कम लोग ही समझ पाते हैं। आध्यात्मिक शिक्षक बीके शिवानी (BK Shivani) ने पिछले दिनों कू (Koo) के माध्यम से कुछ इसी तरह की बात कही, लेकिन पूरी तरह समझाते हुए। शिवानी ने लिखा, हम जितने […]

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बस इतना ही

  कब चाहे मैंने महल चौबारे, कब चाहा हीरे-पन्नों का बोझ, कब चाहा मखमली गद्दों सा जीवन। चाहा था तो केवल दो बूँद प्यार मेरे आँसुओं के खारेपन का स्वाद बदलने के लिए चुटकी भर मिश्री के बोल। माँगा था एक सुगंध भरा फूल, बगीचा नहीं। विद्या भंडारी कोलकाता (पश्चिम बंगाल) (यह इनकी मौलिक रचना […]

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गुस्से से इस तरह बिगड़ जाते हैं आपके बने-बनाये काम

एक बार एक राजा से उसकी प्यारी खूबसूरत रानी ने चाँदनी रात में नौका विहार पर चलने को कहा। राजा ने हाँ कह दिया। शाम को तैयार हो कर रानी खुशी-खुशी नदी के किनारे जा पहुँची। वहाँ राजा को न पा कर उसने नौकरों से पूछा, तो उन्होंने बताया कि महाराज अति आवश्यक कार्य हेतु […]

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