गुस्से से इस तरह बिगड़ जाते हैं आपके बने-बनाये काम

Mind and Soul

एक बार एक राजा से उसकी प्यारी खूबसूरत रानी ने चाँदनी रात में नौका विहार पर चलने को कहा। राजा ने हाँ कह दिया। शाम को तैयार हो कर रानी खुशी-खुशी नदी के किनारे जा पहुँची। वहाँ राजा को न पा कर उसने नौकरों से पूछा, तो उन्होंने बताया कि महाराज अति आवश्यक कार्य हेतु राज्य से बाहर गये हैं और उनका आदेश है कि आपको आपकी सखियों के साथ नौका विहार करा दिया जाए। इतना सुनते ही रानी को गुस्सा आ गया। रानी ने आव देखा न ताव, गुस्से में अपने जेवरात उतार कर फेंकती हुई महल में आ गयी। अगले दिन राजा से बात भी नहीं की। राजा के लाख मनाने पर भी नहीं मानी। उधर राजा को लगा कि रानी ने उनकी बात न मानकर उनकी अवहेलना की है। राजा चले गये। किन्तु उनके मन में गुस्से का भाव घर कर चुका था।

राज दरबार में राजा का मन नहीं लग रहा था। उन्होंने मंत्री की बात को सुने बिना ही उसे डाँट कर जाने को कह दिया। मंत्री को बेइज्जती बर्दाश्त नहीं हुई, उसने अपना गुस्सा सैनिकों पर निकाला। सैनिक घर गया, तो अपनी पत्नी पर चिल्लाया। वह रो-धो कर चुप तो हो गयी, लेकिन अपने बेटे को पीट कर ही उसका गुस्सा शांत हुआ। बेटे से रहा नहीं गया, तो उसने आँगन में खेल रही अपनी छोटी बहन के कान खींचे, बाल नोचे और उसे धक्का देकर चला गया। चार साल की छोटी बच्ची किसी का कुछ बिगाड़ तो सकती नहीं थी, उसने अपने हाथ में लिए खिलौने को ही जमीन पर पटक दिया, खिलौना टूट-फूट कर बिखर गया। शायद जमीन पर पड़े खिलौने के टुकड़े यही सोच रहे थे, अगर उनके बस में होता, तो वे भी अपना गुस्सा किसी के ऊपर निकाल लेते। तभी दुखी मन से बच्ची ने खिलौने के टुकड़ों को उठा लिया, देखा तो टुकड़ों के नीचे एक चींटी दबी मरी पड़ी थी। मुझे लगता है भगवान ने उस खिलौने की इच्छा पूरी कर दी थी।

यह किस्सा मुझे मेरे दादा जी ने सुनाया था बचपन में, क्योंकि वह चाहते थे कि मैं अपना गुस्सा थोड़ा कम करूँ, जिसके कारण मैंने अपने बहुत सारे अच्छे काम बिगाड़ लिये हैं।

दरअसल हम सभी जानते हैं कि किसी क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। लेकिन किसी व्यक्ति, उसके विचार, उसकी आदत, किसी वस्तु, समाज की दशा, समाज में उपस्थित कुरीतियाँ, मौजूद माहौल इत्यादि के विरोध में उत्तेजना से भरी विवेक पर हावी होने वाली हमेशा कुछ गलत करा देने की ताकत रखने वाली प्रतिक्रिया को हम लोग “गुस्सा” कहा करते हैं।

गुस्से से मेरा मतलब उसी डराने वाले भाव से है जो शिक्षक अपने छात्रों पर,पति अपनी पत्नी पर, माता-पिता अपने बच्चे पर, सास अपनी बहू पर, मालिक अपने नौकर पर, भाई अपने छोटे भाई- बहन पर, यहाँ तक कि ड्राइवर अपने खलासी पर, ट्रक वाले साइकिल वाले पर, साइकिल वाला पैदल चलने वाले पर और तो और बच्चे अपने से छोटे बच्चों पर बड़े ही शान से जताते हैं।

आपको लग रहा होगा कि यह भी कोई लिखने की चीज है गुस्सा। तो आप सही है, क्योंकि यह कोई लिखने का विषय नहीं, फिर भी आज कल इसका रूप इतना बड़ा होता चला जा रहा है कि अनायास ही मेरा ध्यान इधर चला गया और मैंने अपने मन में आने वाले विचारों को शब्दों का रूप दे दिया।

आपको यकीन नहीं हो रहा तो एक दिन आप जब उठें तो अपने घर से लेकर आप जहाँ काम करने जाते हैं या पढ़ने जाते हैं, वहाँ तक, फिर वहाँ से वापस घर तक आते समय सबके ऊपर ध्यान दें, बिना कुछ कहे सिर्फ सबको सुनें। आप समझ जायेंगे कि मैं ठीक कह रही हूँ या नहीं।

तो आखिर इसका हल क्या है? हल बहुत आसान है। जब भी किसी भी बात पर आपको गुस्सा आये, तो अपनी प्रतिक्रिया को व्यक्त करने से पहले थोड़ा रुकें, मन में कम से कम 10 से 15 तक गिनें और सोचें कि आप जो करने या बोलने जा रहे हैं, क्या वह सही है। इसके बाद ही कुछ बोलें या कुछ करें। क्योंकि बोलने से पहले हम अपनी बातों या शब्दों में सुधार कर सकते हैं, लेकिन बोलने के बाद नहीं।

किसी ने क्या खूब कहा है कि बोलने से पहले शब्द इंसान का गुलाम होता है, किन्तु बोलने के बाद इंसान अपने शब्दों का गुलाम बन जाता है। इसी तरह एक सुंदर उक्ति और है- जीभ में हड्डियाँ नहीं होतीं, किन्तु यह हड्डियाँ तुड़वाने की ताकत रखती है।

कहने का मतलब यह है कि गुस्सा अच्छे से अच्छे आदमी को अर्श से फर्श तक लाने का काम करता है, जिसके ज्यादातर शिकार होते हैं हमारे युवा। हमारा देश ऐसे युवाओं से भरा है, जो विभिन्न प्रतिभाओं के धनी हैं। लेकिन बहुत बार इस गुस्से के कारण वे गलत संगत और गलत दिशा में चले जाते हैं। गलत रास्ते पर चल कर उन्हें अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं रहता। बहुत से अराजक तत्व और समाज के दुश्मन उनकी स्थिति का लाभ उठा कर उन्हें देशद्रोही, भ्रष्ट, उग्रवादी और आतंकी आदि बना डालते हैं। उन्हें ऐसे दलदल में धकेल देते हैं जहाँ से वापस नहीं निकला जा सकता। उनकी पूरी जिंदगी दाँव पर लग जाती है। वे चाह कर भी अपने आप को पहले जैसा नहीं बना पाते। और यह सब होता है सिर्फ गुस्से के कारण।

मेरे विचार से यदि इस शब्द “गुस्सा” का विस्तार करें तो अर्थ निकलता है –
गु- गुमराह करने वाला
स्- सोचने समझने की शक्ति को क्षीण करने वाला
सा- सारे सपनों को तोड़ कर बिखेर देने वाला

इसलिए मेरे प्यारे दोस्तों, अपनी जिंदगी में न दिखायी देने वाले इस सबसे बड़े शत्रु से यथासंभव बच के रहें। सावधान रहें।

शुभ्रा तिवारी

 

(आवरण चित्र- शिप्रा तिवारी)

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