वर्षा रावल की रचना- एक कहानी …..

झूठ कहते हैं जो कहते हैं, मरने के बाद कुछ भी साथ नहीं जाता….. विश्वास नहीं तो खोद दो दफन हुई औरतों की लाशें, अग्नि को समर्पित मरी हुई औरतों का इतिहास…. सदियों पहले मर चुकी औरतें हों या उसके बाद क्रमशः उम्रदराज़ हो, युवती या बच्ची ही स्त्री जाति की हर मृत आत्मा के […]

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ज्योति नारायण की रचना- सुरमई

कर रहा है सफर सौरभी गुलमोहर सुरमई शाम भी आज जाये ठहर मैं निशा के पहर देखती थी डगर खिड़की पे खड़ा चाँद आया नजर करके बातें उसे भी बुलाया है घर बन के मितवा तभी भर लिया हाथ धर प्रीत मन में पली खिल गया फिर बहर मौजे तूफां उठा है दिल के सगर […]

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नीलिमा मिश्रा की रचना- देहरी

जीवन संझा की देहरी पर आज बैठी सोच रही हूँ मैं श्रांत, क्लान्त तन मेरा मन मेरा अवसान की ओर ढलते ढलते धूमिल होता जा रहा देख रही हूँ मैं दूर कहीं बालकिरणों जैसी सुनहरी लालिमा लिये वो अल्हड़, खिलंदड़ा सा मासूम बचपन हँस हँस कर बुला रहा इशारे से फिर अपने पास मुझे खुली […]

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नीलिमा मिश्रा की रचना- माटी की व्यथा

मैं तो कच्ची माटी ही थी, तुम्हारे समीप हे मेरे राम, तुमने मुझे अपने रंग में रंग, दिया एक मुझे नया आयाम। ढल गई तुम्हारे साँचे में प्रभु, बन गई मैं तुम्हारी सहगामिनी, मिला तुम्हें चौदह बरस का बनवास, चली संग तुम्हारे बन के अनुगामिनी। दुष्ट रावण के चंगुल से छुड़ाया फिर भी तुम्हारे नैनों […]

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वर्षा रावल की रचना- मिठास मत घोलना

नर्म-नर्म गोले सी पहली बार आँखें खोलीं दुनिया में आगमन अभी ही हुआ था… तुम्हारी नई-नई माँ पीड़ा में भी मुस्कुरा रही थी मिठास से लबरेज़ जो थी… तुमने जैसे ही रोने को मुँह बनाया दो बूँद शहद घुल गया तुम्हारे मुँह में… और इस मिठास को चाटने की कला तुम्हें आ गई… थोड़ी बड़ी […]

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पुरुषों और महिलाओं के लिए हों समान अधिकार, समान भूमिका और समान अवसर- अनुप्रिया पटेल

केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल (Anupriya Patel) ने कहा कि लैंगिक समानता न केवल महिलाओं के हित के लिए है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र के हित के लिए भी है। राज्य मंत्री ने पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकार, समान भूमिका और समान अवसर की आवश्यकता पर बल दिया ताकि वे जीवन […]

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प्रेम

क्यूँ झुकता है आसमां, बाँहों में समेटने धरती को, हाँ ये प्रेम ही तो है। क्यूँ गुनगुनाते हैं भौंरे, चूमने फूलों को हाँ ये प्रेम ही तो है। क्यूँ दौड़ती है नदी, सागर में समाने, हाँ ये प्रेम ही तो है। क्यूँ बादल बरसते हैं, पर्वतों पर, हाँ ये प्रेम ही तो है। क्यूँ आँख […]

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देहरी

औरतें सूनी आँखें लिए मुँह भरकर दर्द रोती हैं देहरी पर….. फिर आपस के दर्द को बराबर तोलकर बाँट लेती हैं, और हल्की होकर भर लेती हैं खुशियों वाला ऑक्सीजन……. जिसे देहरी से अंदर जाकर बनना ही है अंततः विषैली कार्बन डाइऑक्साइड… फिर छटपटाती कलपती लौटना है देहरी पर, जहाँ औरतें बैठी हैं और भर […]

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मैं खुश हूँ कि मैं नारी हूँ

मैं खुश हूँ कि मैं नारी हूँ दुर्गा, शक्ति, शिवा, धात्री कहलाने की मैं ही तो अधिकारी हूँ।   चाहे जितनी दो यातनाएँ, प्रताड़नाएँ या बाँधो जंजीरों में मैं इन सबसे कब हारी हूँ? मैं खुश हूँ कि मैं…………….   प्रेम, दया, करुणा धर अपने मन में, काँटों से घिरी हुई, मैं एक फुलवारी हूँ मैं खुश हूँ कि […]

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एक परी मेरे मन में सोती भी है, रोती भी है

एक परी मेरे मन में सोती भी है, रोती भी है। और उम्र सपनों की गठरी, ढोती भी है, खोती भी है।। मन का मेरे हाल ना पूछो, हाल हुआ बेहाल ना पूछो, लहर-लहर लहराती नदियाँ, हैं कितनी उत्ताल न पूछो। जीवन के तटबंधों तक आ, मुझको वही भिगोती भी है। एक परी मेरे मन […]

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