नवरात्रि की नौ कहानियाँ- अफसर बिटिया

Colours of Life

नवरात्रि के मौके पर हम देश की ऐसी नौ बेटियों की बात करेंगे जिन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया।

पहली कहानी एक अफसर बिटिया की। आईएएस ऑफिसर होना या बनना अधिकांश युवाओं का सपना होता है, लेकिन इस सपने को साकार करना किसी तपस्या से कम नहीं होता और ऐसी ही तपस्या की है किंजल सिंह ने। जब किंजल मात्र छ: महीने की थी, उनके पिता की हत्या कर दी गयी। वह डीएसपी के पद पर कार्यरत थे और मार्च 1982 में एक फर्जी एनकाउंटर मामले में उनके विभाग के लोगों ने ही उनकी हत्या कर दी। तब किंजल की बहन प्रांजल अभी माँ के गर्भ में ही थी। उसके बाद शुरू हुआ किंजल की माँ विभा सिंह का अपने पति के हत्यारों को सजा दिलाने के लिए न्याय की गुहार लेकर कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने का संघर्ष। जब किंजल के पिता की हत्या की गयी, तब उनके पिता ने आईएएस की मुख्य परीक्षा पास कर ली थी, इंटरव्यू होना बाकी था। इस बात से आहत किंजल सिंह की माँ विभा सिंह ने तय किया कि वह अपनी बेटियों को आईएएस अफसर बनायेंगी और अपने पति के सपने को साकार करेंगी।

उन्होंने अपनी बेटियों के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह हमेशा अपनी बेटियों की पढ़ाई को लेकर सतर्क और जागरुक रहीं, जिसके परिणामस्वरूप किंजल और प्रांजल दोनों बहनों ने आईएएस की परीक्षा पास की। इस पूरे सफर में किंजल सिंह की मुश्किलें हर वक्त उनके सामने बाधा बनकर खड़ी रहीं, लेकिन किंजल भी अपने लक्ष्य से कभी पीछे नहीं हटीं, बल्कि बड़ी हिम्मत और बहादुरी से उसका सामना किया।

लेकिन परेशानियों का दौर ऐसे ही खत्म नहीं हुआ। जब कुछ ही दिनों में उनकी परीक्षा होने वाली थी, कैंसर की लाइलाज बीमारी से उनकी माँ की मृत्यु हो गयी। फिर भी किंजल ने अपनी हिम्मत नहीं हारी और अपनी बहन के साथ और भी मेहनत के साथ पढ़ाई में जुट गयीं। पढ़ाई के साथ-साथ एक बड़ी बहन होने की जिम्मेदारी भी उन्होंने बखूबी निभाई और अपनी बहन के साथ हिम्मत और लगन से खड़ी रहीं। इतनी सारी मुश्किलों के बाद जब परीक्षा का परिणाम आया, तब दोनों बहनों ने आईएएस की परीक्षा पास कर ली थी, लेकिन इस खुशी को बाँटने के लिए उनके साथ उनके माता-पिता नहीं थे। किंजल सिंह इस बात से दुखी तो थीं, पर उन्हें इस बात की संतुष्टि थी कि उन्होंने अपने माता-पिता की इच्छा को पूर्ण कर दिया था।

किंजल सिंह ने आईएएस बनने के बाद अपने पिता के हत्यारों को जेल भिजवाया और अपने माता-पिता को सही मायने में श्रद्धांजलि दी। किंजल के विषय में लिखते एक पंक्ति बार-बार मेरे मन मे आ रही है, जिसे लिखने से मैं अपने आप को रोक नहीं पा रही हूँ –
“बाधाओं से कब हारी है?
संघर्ष का दूसरा नाम ही नारी है”।

(आवरण चित्र किंजल सिंह के फेसबुक पेज से साभार)

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