तेरी मानवता कहाँ खो गई है

Mind and Soul

अरे ओ मानव! बता जरा
तेरी मानवता कहाँ खो गई है?
क्या तेरी सारी की सारी संवेदनाएँ
कुंभकरण की नींद सो गई हैं?

ऑक्सीजन सिलिंडर के
दाम तो हैं मात्र कुछ हजार।
बेच रहे कुछ लोग लाखों में
उनको धिक्कार है धिक्कार।।

काटी है कुछ ने खूब चाँदी
दीन-दुखियों को सता-सता कर।
बेच रहे कुछ लोग ग्लूकोज-नमक
रेमडिसिवर बता-बता कर।

नकली इंजेक्शन को बेच
कुछ लोग दौलत खूब कमा रहे।
बेचारे मरीज तो
पैसे-प्राण दोनों ही गँवा रहे।।

क्या बीत रही है उन पर
जिन्होंने खोया है अपनों को।
तुम्हें इस से क्या,
तुम लगे रहो पूर्ण करने निज सपनों को।।

क्या तुम जिंदा हो
जाँच कर लो दिल पर हाथ रख कर।
धड़कता है दिल सीने में तो
क्यों जी रहे हृदयहीन बन कर

चिकित्सा सेवाओं से जुड़े लोग
जन रक्षक होते हैं।
कुछ लोगों की देखो करतूतें
जैसे जन भक्षक लगते हैं।।

चेत जाओ अब भी सुनो
अपनी आत्मा की आवाज।
प्रायश्चित कर लो वरना
खुदा की लाठी पड़ेगी बेआवाज।।

हर्षलता दुधोड़िया

हैदराबाद

(यह इनकी मौलिक रचना है)

(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *