विद्या भंडारी की कविता

कुछ चेहरे लुप्त हुए कुछ चेहरे नये जुड़े जीवन के अध्याय में कई नये बदलाव जुड़े। कुछ की दिनचर्या बदली कुछ बहुत एक्टिव हुए। सोच कुछ की हरी हुई कुछ की सुखी धरा हुई । वक्त के नये मोड़ पर सर्द मौसम हो गया पन्ने कुछ उड़ने लगे उम्र की किताब के। सोचूँ आँख बंद […]

Continue Reading

ज्योति नारायण की कविता

नारी का एक सुन्दर रूप जल की तरह सूर सरिता कूल है तू , सलिल सुचिता संचिता, नीर है और क्षीर भी है, धीर वीर सी सविता । बह रही अच्छुण धरा जो, वो ही है तू अमरता, गिरि शिखर को लाँघती, कहीं धार धार सी धारिता । जागृति अध्याय प्रथम तू, चेतना चैतन्यता, और […]

Continue Reading

डॉ. मनोरमा चंद्रा “रमा” की रचना- मित्रता

मित्र मिलन की भावना, जागे मन में आज। बचपन के दिन याद कर, सुख का हो आगाज।। कदम कदम पर साथ चल, किए नेक सब काम। सदा दोस्त हमदर्द बन, हरते विपत तमाम।। श्रेष्ठ मित्र पहचान कर, करना उससे प्रीत। निश्छलता के भाव से, बन जाना मनमीत।। छोड़ो मत यूँ साथ को, बना रहे ये […]

Continue Reading

नीलिमा मिश्रा की रचना- रीत

कैसी “रीत” है दुनिया की, कि संग संग रहते हुये भी, मिलते नहीं कभी नदिया, झील और सागर के दोनों किनारे, चाँद और सूरज की , युगल जोड़ी है संग संग, फिर भी इनका मिलन है दुश्वारे, राधा कृष्ण एक होते हुये भी, ना मिल पाये कभी , जगत रीत के मारे, राम और सिया […]

Continue Reading

वर्षा रावल की रचना- एक कहानी …..

झूठ कहते हैं जो कहते हैं, मरने के बाद कुछ भी साथ नहीं जाता….. विश्वास नहीं तो खोद दो दफन हुई औरतों की लाशें, अग्नि को समर्पित मरी हुई औरतों का इतिहास…. सदियों पहले मर चुकी औरतें हों या उसके बाद क्रमशः उम्रदराज़ हो, युवती या बच्ची ही स्त्री जाति की हर मृत आत्मा के […]

Continue Reading

तस्वीरें बोलती हैं, पुरानी यादों के पट खोलती हैं

तस्वीरें… एक जमाना था, जब तस्वीर, कैमरा, स्टूडियो आदि के नाम से ही हमारे चेहरे पर एक नूर सा छा जाता था। तस्वीरों का शौक यूँ तो सबको ही होता है, लेकिन महिलाओं में यह शौक खास तौर पर देखा जाता है। यह सच कल भी था और आज भी है, बस उस शौक को […]

Continue Reading

ज्योति नारायण की रचना- सुरमई

कर रहा है सफर सौरभी गुलमोहर सुरमई शाम भी आज जाये ठहर मैं निशा के पहर देखती थी डगर खिड़की पे खड़ा चाँद आया नजर करके बातें उसे भी बुलाया है घर बन के मितवा तभी भर लिया हाथ धर प्रीत मन में पली खिल गया फिर बहर मौजे तूफां उठा है दिल के सगर […]

Continue Reading

नीलिमा मिश्रा की रचना- देहरी

जीवन संझा की देहरी पर आज बैठी सोच रही हूँ मैं श्रांत, क्लान्त तन मेरा मन मेरा अवसान की ओर ढलते ढलते धूमिल होता जा रहा देख रही हूँ मैं दूर कहीं बालकिरणों जैसी सुनहरी लालिमा लिये वो अल्हड़, खिलंदड़ा सा मासूम बचपन हँस हँस कर बुला रहा इशारे से फिर अपने पास मुझे खुली […]

Continue Reading

अपनी हर सोच और बोल को आशीर्वाद बनायें – बीके शिवानी (BK Shivani)

सोच और बोल की सकारात्मकता और नकारात्मकता के बारे में आध्यात्मिक शिक्षक बीके शिवानी (BK Shivani) ने आज कू (Koo) के माध्यम से एक टिप्पणी की है। उन्होंने कू पर लिखा है, “मेरे बच्चे कहना नहीं मानते, पढ़ते नहीं, खाना नहीं कहते…” सोच और बोल घर के वातावरण में फैल जाते हैं, प्रभाव बच्चों पर […]

Continue Reading

मधु सक्सेना की रचना- ऐसे ही चलते रहना

तेरे माथे पर लिख देना है मुझे अपने होठों से एक दुआ .. भर देना चाहती हूँ तेरी आँखों में जगमगाते उम्मीद और सपने .. रख देना है तेरे होठों पर लहलहाती फसल सी हँसी .. तेरे चेहरे पर मल देना है सूरज का तेज चाँद का रंग लिए … लिख देना है तेरे सीने […]

Continue Reading