प्रकृति से न करो खिलवाड़

जीवन के हर मोड़ पर नये पन्नों का खुलना मानो प्रकृति के ऋतुओं में बदलाव आना बचपन की वे तोतली बातें, वो खेलना कूदना जैसे बारिश का छमछम गिरना जवानी की चंचलता में जैसे गुलाबी ठण्ड का अहसास होना उम्र का आगे बढ़ना मानो पतझड़ में पत्तों का गिरना सुख-दुख की नैया में बैठे किनारे […]

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विचलित धरा, महसूस कर उसका कराहना

हरी-भरी वसुंधरा के गुनहगार हैं हम न जाने कितने घाव सहन किये इसने सदियों से हमारी विरासत की भागीदार है यह भूत भविष्य वर्तमान है यह चोट पायी इन्सान से ऐसी इसने हो गयी धरा बेहाल जख्म दिए कितने मानवीय गतिविधियों ने अरे बस, अब तो रुक जा, देख आज वही धरती तुम्हें घर पे […]

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