हर सम्मान से पहले,
आत्मसम्मान जरूरी है।
विधाता ने जीवन दिया,
इस जीवन का मान जरूरी है।
आत्मसम्मान के बिना,
राजा रंक बना फिरता है।
आत्मसम्मान से भरा रंक,
राजा की तरह जीता है।
आत्मसम्मान यदि मरता है,
इंसान मन से मर जाता है।
निभाता है वह हर रिश्ता,
खुद मन से मर जाता है।
हर रिश्ते से बढ़कर रिश्ता,
खुद से खुद का होता है।
आत्मा है परमात्मा का धन,
तो हिफाजत जरूरी है मन की।
आत्मसम्मान से भरा यह मन,
हर रिश्ते में खुश रह लेता है,
समर्पण रिश्तो में करने से पहले,
समर्पित खुद को करता है।
आत्मसम्मान के बिना,
मनुष्य पशु बन जाता है।
गैरों को छलने से पहले,
हर दिन खुद को छलता है।
भोजन-जल, वायु-आयु की तरह
आत्मसम्मान का सम्मान करें,
संतोषप्रद हो जीवन,
इस जीवन का सम्मान करें।
सुनीता कुमारी
पूर्णिया (बिहार)
(यह इनकी मौलिक रचना है)
(आवरण चित्र- श्वेता श्रीवास्तव)