आज औरत
खिज़ा की रुत में पलाश बनकर खिला भी करती है आज औरत। लगा के पहरे बला के ऊपर दुआ भी करती है आज औरत।। चले जो वश तो बचा के रख ले वो अपनी साँसें किसी की खातिर। यूँ ज़र्द पत्तों को अश्क देकर हरा भी करती है आज औरत।। न कोई जादू तिलिस्म कोई […]
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