नीलिमा मिश्रा की रचना- देहरी
जीवन संझा की देहरी पर आज बैठी सोच रही हूँ मैं श्रांत, क्लान्त तन मेरा मन मेरा अवसान की ओर ढलते ढलते धूमिल होता जा रहा देख रही हूँ मैं दूर कहीं बालकिरणों जैसी सुनहरी लालिमा लिये वो अल्हड़, खिलंदड़ा सा मासूम बचपन हँस हँस कर बुला रहा इशारे से फिर अपने पास मुझे खुली […]
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