नारी देह से परे भी कुछ है
बुद्धि, युक्ति, व्यंजना करे जो गूढ़ मंत्रणा वो सूर्य सी प्रदीप्त है नहीं कपोल कल्पना। ललाट उच्च, नेत्र शील ज्ञान सिंधु है भरा अधर कमल से दीखते, हैं बोलते खरा-खरा हृदय पुनीत भाव से गृहस्थ धाम संजना वो सूर्य सी प्रदीप्त है नहीं कपोल कल्पना। वो शुभ्र है या श्याम है नहीं वो मात्र चाम […]
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