खेतों की मेड़ों पर ये चली है, तब कहीं जाके ये माँ सी ढली है

छू लिया है जिसने हिमालय उस पर्वतराज का है ताज हिन्दी। कंठ है, सुर है, है साज हिन्दी, है करोड़ों की आवाज हिन्दी।। खेतों की मेड़ों पर ये चली है तब कहीं जाके ये माँ सी ढली है। इसकी पहचान हर एक डगर है, इसकी पहचान हर एक गली है।। तेलुगू, कन्नड़, तमिल, बांग्ला, मराठी, […]

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सुंदर है, मनोहर है, मीठी है, बहुत ही मनोरम परिचय है इस हिन्दी का

पूछा किसी ने मुझसे, इस अंग्रेजी के जमाने में, क्या महत्व है हिन्दी का….? ज्यादा कुछ तो नहीं दो लाइनें बस कहीं मैंने, महाभारत के युद्ध में जो स्थान है शिखंडी का माँ शब्द को पूरा करने के लिए जो महत्व है एक छोटी सी बिंदी का, ऐसा ही कुछ खास महत्व है भाषाओं में […]

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कर्मभूमि तेलंगाना में रह कर हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर रही हैं ज्योति नारायण

कविता कब से लिखना आरंभ किया, स्वयं को ही पता नहीं। बचपन में कोटेशन लिखने की आदत थी। कुछ भी मन में आया, डायरी में नोट करती थी। खुश होती या क्रोधित होती, तो भी लिखती थी। कम उम्र में शादी होने पर गृहस्थी का जुआ कन्धे पर आने पर स्वयं पर कभी ध्यान नहीं […]

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तमिलनाडु में हिन्दी के लिए अनुपम कार्य कर रही हैं अनुपमा

कहते हैं जहाँ चाह हो, वहाँ राह निकल ही आती है। हिन्दी के प्रचार में लगी अनुपमा त्रिपाठी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। अनुपमा चाहतीं, तो वह अपने घर के करीब रह कर भी हिन्दी अध्यापन का काम कर सकती थीं, लेकिन इनकी सोच अलग थी। अनुपमा ने अपने इस काम के लिए […]

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