मेरा, केवल मेरा सूरज

आज फिर आया था वह देखो जा छुप रहा है, झुरमुटों में, कहने पर नहीं सुनता, रोकने पर नहीं रुकता वह कहाँ मानता है एक भी बात बताया था मैंने उसे कल रात ठीक नहीं इस तरह हमारा मिलना मुझसे मिलने के लिए तुम्हारा दिन भर जलना हौले से मुस्कुराया था वह। वही, हाँ वही […]

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नारी, एक चमकीला तारा, टूट कर गिरता हुआ

नारी नारी एक शक्ति है, श्रद्धा है, जननी है, धरती है। फिर शापित क्यों है? विचलित मन से निकली है यह कविता क्या ऐसा होना उचित है? नारी बेरोशन एक चमकीला तारा टूट कर गिरता हुआ, सड़ी-गली परम्परा की लपलपाती लपटों के बीच घिरी झुलसती हुई कोई एक स्मृति, किसी सरोज की खण्डित प्रतिच्छवि। सदियों-सदियों […]

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