खामोशी से कहना है

  हमें कर्मशील सदा  रहना है बस नदी सा बहते रहना है पथ में आये शूल या पत्थर हमें आगे सदा ही बढ़ना है अनजाने पथ पर भी राही सोच समझ कर चलना है रात जले जो दीप देहरी सुबह उसे तो बुझना है आज हैं साँसें, कल न होंगी एक दिन इसने छलना है […]

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नारी, एक चमकीला तारा, टूट कर गिरता हुआ

नारी नारी एक शक्ति है, श्रद्धा है, जननी है, धरती है। फिर शापित क्यों है? विचलित मन से निकली है यह कविता क्या ऐसा होना उचित है? नारी बेरोशन एक चमकीला तारा टूट कर गिरता हुआ, सड़ी-गली परम्परा की लपलपाती लपटों के बीच घिरी झुलसती हुई कोई एक स्मृति, किसी सरोज की खण्डित प्रतिच्छवि। सदियों-सदियों […]

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