बारिश का डेरा ️

Mind and Soul

चाँदी का थाल सा
चंदा का रूप
झूमर हैं खेलते
तारे अनूप

नीरव नि:शब्द है
छाया प्रतिरूप
सिमटा अवधूत सा
गहरा वो कूप

मुग्धा है छवि सी वो
शीतल स्वरूप
लोकती-विलोकती
जलधर बहुरूप

पुरातन नित नूतन है
जगती प्रारूप
प्रारब्ध का दोष क्या
समय रहा चुप

तिरछी रेखाओं में
जीवन की धूप
श्रम बिन्दु सींचती है
बंधक है भूख

बारिश का डेरा है
जलकण पुहुप
सिन्धु का घेरा है
नृपति हैं भूप

ज्योति नारायण

हैदराबाद (तेलंगाना)

(यह इनकी मौलिक रचना है)

 

(आवरण चित्र- वैष्णवी तिवारी)

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