है नहीं आनंद किंचित रात बीती, धैर्य जाये

सुप्त धड़कन, क्षीण तन मन वेदना से कसमसाये है नहीं आनंद किंचित रात बीती, धैर्य जाये भावना का ज्वार फूटे, गीत बन के बह चले भोर में चन्दा चला है सूर्य से मिल के गले इस घड़ी,उनको बुला दो हिय यही संगीत गाये सुप्त धड़कन, क्षीण तन मन वेदना से कसमसाये लाज से आरक्त मुख […]

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स्त्री के बारे में एक कविता

बनी रहती है कठपुतली उसका सब कुछ है उधार का।। कहाँ अपने होते हैं पाली हुई चिड़िया के पंख। कहाँ होती है उसकी अपनी कोई सोच। विद्या भंडारी कोलकाता (पश्चिम बंगाल) (यह इनकी मौलिक रचना है)

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प्रकृति से न करो खिलवाड़

जीवन के हर मोड़ पर नये पन्नों का खुलना मानो प्रकृति के ऋतुओं में बदलाव आना बचपन की वे तोतली बातें, वो खेलना कूदना जैसे बारिश का छमछम गिरना जवानी की चंचलता में जैसे गुलाबी ठण्ड का अहसास होना उम्र का आगे बढ़ना मानो पतझड़ में पत्तों का गिरना सुख-दुख की नैया में बैठे किनारे […]

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कहानी- फड़फड़ाते पन्ने

माँ….माँ….कहाँ हो…..लगभग चिल्लाते हुए अमिय अपनी माँ को पुकारता हुआ रसोई में गया। माँ सब्जी काट रही थी। क्या हुआ अमिय? कहते हुए माँ जैसे ही पलटी, वैसे ही अमिय के चेहरे की खुशी हैरानी में बदल गयी। अमिय- यह क्या हुआ माँ…माथे पर पट्टी? फिर पापा ने….. माँ- कुछ नहीं रे, गिर गयी थी। […]

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हरे पत्तों के गिरने का कोई मौसम नहीं होता

मिले होते जो राहों में, तो कोई गम नहीं होता जुस्तजू हो गयी होती ये दिल पुरनम नहीं होता लुटे हम प्यार की खातिर, मगर कुछ भी नहीं हासिल वफ़ा करते वफ़ा से वो, तो दिल में खम नहीं होता सितारे जगमगाते हैं, मगर रोशन कहाँ होते जलाते दीप देहरी पे, तो वो मातम नहीं […]

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तुम्हें मुझसे प्रेम नहीं है

कैसे मान लूँ मैं, जो तुम कहते हो कि प्रेम नहीं है। मेरा नाम आते ही तुम्हारे होंठों पर मुस्कान का तैर जाना, गैरों की बातों में भी जिक्र मेरा करते हो प्रमाण है इस बात का, और तुम कहते हो कि प्रेम नहीं है। तस्वीर मेरी देखते हो दिन में सौ दफा, यादों को […]

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आँसू

नहीं मचाती शोर कभी ये, चुपके ही रह जाती। अश्रु भरी अँखियों की पीड़ा, व्यथा कथा कह जाती।। लिए गठरिया कर्तव्यों की, प्रतिपल चलती नारी। माँ बेटी भार्या बनकर नित, अपना जीवन हारी। अंतर्मन में चीख दबाकर, दुख सारे सह जाती। अश्रु भरी अँखियों की पीड़ा, व्यथा कथा कह जाती।।1।। नहीं भावना समझे कोई, स्वार्थ […]

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कोने

सुनो! कौन कहता है कोने सूने या बेवज़ह होते हैं लगा दी जाती हैं लताएँ निःशब्द आँगन के कोनों में चहचहाने उन चिड़ियों को जो बैचैन है अपनों के पलायन से, वीराने ड्राइंग रूम की छटपटाहटें करने दूर कोनों में रख दिये जाते हैं सूखे फूलों से सजे गुलदान ठीक उसी तरह जैसे भीतर से […]

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जिन्दगी सँवारने का सुनहरा अवसर है ये

आज हम सभी इस महामारी के बीच ऐसे परेशान हैं कि क्या करें, क्या ना करें। आज हर व्यक्ति उहापोह की स्थिति में है, रोजगार वाले हों या बेरोजगार, सरकारी नौकरी वाले हों या व्यवसाय करने वाले हों, पुरुष हों या महिला, बड़े हों या बच्चे, सभी अपनी-अपनी समस्याओं से निजात पाना चाहते हैं। लेकिन […]

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मैं वृक्ष हूँ

  मैं वृक्ष हूँ अपनी आत्मकथा सुनाता हूँ अपने मन की बात बतलाता हूँ सदियों से खड़ा साक्षी हूँ हर सुख-दुख के लम्हों का द्रष्टव्य मैं ही तो गवाक्षी हूँ सभ्यता की उत्पत्ति देखी विनाश को भी देख रहा हूँ मौन साधना की परिणिति अविचल ख़ुद को रख रहा हूँ जितना ऊपर बढ़ जाता हूँ […]

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