बारिश का डेरा ️
चाँदी का थाल सा चंदा का रूप झूमर हैं खेलते तारे अनूप नीरव नि:शब्द है छाया प्रतिरूप सिमटा अवधूत सा गहरा वो कूप मुग्धा है छवि सी वो शीतल स्वरूप लोकती-विलोकती जलधर बहुरूप पुरातन नित नूतन है जगती प्रारूप प्रारब्ध का दोष क्या समय रहा चुप तिरछी रेखाओं में जीवन की धूप श्रम बिन्दु सींचती […]
Continue Reading