वर्षा रावल की रचना- एक कहानी …..

झूठ कहते हैं जो कहते हैं, मरने के बाद कुछ भी साथ नहीं जाता….. विश्वास नहीं तो खोद दो दफन हुई औरतों की लाशें, अग्नि को समर्पित मरी हुई औरतों का इतिहास…. सदियों पहले मर चुकी औरतें हों या उसके बाद क्रमशः उम्रदराज़ हो, युवती या बच्ची ही स्त्री जाति की हर मृत आत्मा के […]

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वर्षा रावल की रचना- मिठास मत घोलना

नर्म-नर्म गोले सी पहली बार आँखें खोलीं दुनिया में आगमन अभी ही हुआ था… तुम्हारी नई-नई माँ पीड़ा में भी मुस्कुरा रही थी मिठास से लबरेज़ जो थी… तुमने जैसे ही रोने को मुँह बनाया दो बूँद शहद घुल गया तुम्हारे मुँह में… और इस मिठास को चाटने की कला तुम्हें आ गई… थोड़ी बड़ी […]

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वर्षा रावल की कविता- अंधी मछली

कौतूहल से देखते हैं आने जाने वाले मोहित होते, सौंदर्य से चमकती काया आकर्षण में बाँध लेती अनायास …. अँधेरे ने अँधेरे में रखा उसे कि आँखों में गज़ब का सम्मोहन होता है… कि देखना उसका अधिकार है कि नहीं वो गांधारी जो बाँध ले आँखों में पट्टियाँ …. क्योंकि ये खूबसूरत चमकीली देह की […]

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देहरी

औरतें सूनी आँखें लिए मुँह भरकर दर्द रोती हैं देहरी पर….. फिर आपस के दर्द को बराबर तोलकर बाँट लेती हैं, और हल्की होकर भर लेती हैं खुशियों वाला ऑक्सीजन……. जिसे देहरी से अंदर जाकर बनना ही है अंततः विषैली कार्बन डाइऑक्साइड… फिर छटपटाती कलपती लौटना है देहरी पर, जहाँ औरतें बैठी हैं और भर […]

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गुल्लक आउटडेटेड हो गये हैं

बचपन में मिट्टी की गुल्लक में सिक्कों का संचय हर बुरे वक़्त पर अच्छा वक़्त लाने की कोशिश सिखायी जाती थी …. सिखा दिया जाता था धैर्य, संयम, परहित और ऐसे ही जीवन मूल्य पिता और माँ के दिये एक-एक सिक्के का अपना महत्व था …. फोड़ने पर नहीं, बल्कि नहीं फोड़ने पर मिलती शाबाशी […]

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आत्माएँ

भटक रही है वो भी जैसे भटकती हैं अतृप्त आत्माएँ.… आत्माओं का भटकना कुछ ने सुना कुछ ने अनुभूत किया है पर निष्कर्ष यही कि भटकती हैं अतृप्त आत्माएँ….. अतृप्ति क्या है? कोई इच्छा कोई आकांक्षा कोई चाह कोई कामना जो पूरी हो न सकी……. अतृप्ति बोझ है सीने का दिल में लगा शूल है […]

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सूख जाएगी कविता की नदी

युगों बीत गए छलछलाती नदी को देखे बहुत पानी हुआ करता था उसके दिल मे …. अपना प्रेम दे देने को आतुर.. ममता सम्वेदना से लबरेज पूरी तरह स्वाभाविक वास्तविक….. फिर दौर आया रेत के सैलाब का नदी न रहने दी नदी , सुखा दिया छलछल पानी को वैसे ही मरने लगी नदी जैसे भरी […]

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