विद्या भंडारी की कविता

कुछ चेहरे लुप्त हुए कुछ चेहरे नये जुड़े जीवन के अध्याय में कई नये बदलाव जुड़े। कुछ की दिनचर्या बदली कुछ बहुत एक्टिव हुए। सोच कुछ की हरी हुई कुछ की सुखी धरा हुई । वक्त के नये मोड़ पर सर्द मौसम हो गया पन्ने कुछ उड़ने लगे उम्र की किताब के। सोचूँ आँख बंद […]

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विद्या भंडारी के दो मुक्तक

मुक्तक- एक रूठती धरा को मनाने को, आओ कुछ मनुहार करें, धरती को फूलों से भर दें,आओ पश्चाताप करें। धरती पर है सब कुछ सुंदर, सुंदरता का मोल करें, मानवता को जागृत करके, अपनी धरा गुलजार करें । मुक्तक- दो त्राहि-त्राहि की इस धरती को, नये सूर्य की किरण मिले, नैतिकता की फसलें बोएं, साहस […]

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विद्या भंडारी की रचना- समय

वक्त के समंदर में आये कई सिकन्दर और कई डूब गये कोई बचा नहीं पाया। समय के बेलगाम घोड़े को कोई जंजीर से बाँध नहीं पाया। वक्त की आँधियाँ कितना कुछ लील गयीं कोई रोक नहीं पाया। शहंशाह हो या वैज्ञानिक समय के बदलाव के आगे ठहर न पाया। वक्त की पुकार ब्रह्मांड की पुकार […]

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