गुल्लक आउटडेटेड हो गये हैं

बचपन में मिट्टी की गुल्लक में सिक्कों का संचय हर बुरे वक़्त पर अच्छा वक़्त लाने की कोशिश सिखायी जाती थी …. सिखा दिया जाता था धैर्य, संयम, परहित और ऐसे ही जीवन मूल्य पिता और माँ के दिये एक-एक सिक्के का अपना महत्व था …. फोड़ने पर नहीं, बल्कि नहीं फोड़ने पर मिलती शाबाशी […]

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मैं खुश हूँ कि मैं नारी हूँ

मैं खुश हूँ कि मैं नारी हूँ दुर्गा, शक्ति, शिवा, धात्री कहलाने की मैं ही तो अधिकारी हूँ।   चाहे जितनी दो यातनाएँ, प्रताड़नाएँ या बाँधो जंजीरों में मैं इन सबसे कब हारी हूँ? मैं खुश हूँ कि मैं…………….   प्रेम, दया, करुणा धर अपने मन में, काँटों से घिरी हुई, मैं एक फुलवारी हूँ मैं खुश हूँ कि […]

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एक परी मेरे मन में सोती भी है, रोती भी है

एक परी मेरे मन में सोती भी है, रोती भी है। और उम्र सपनों की गठरी, ढोती भी है, खोती भी है।। मन का मेरे हाल ना पूछो, हाल हुआ बेहाल ना पूछो, लहर-लहर लहराती नदियाँ, हैं कितनी उत्ताल न पूछो। जीवन के तटबंधों तक आ, मुझको वही भिगोती भी है। एक परी मेरे मन […]

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अमर शहीदों की धरती को नमन करो

अमर शहीदों की धरती को नमन करो बलिदानों का बीज भूमि में वपन करो। करो प्रतिज्ञा तुम इसके सम्मान की वह रण छंगी वाना तुम भी वरण करो।। यह परंपरा है आजस्त्र पुरखों वाली यह गाथा है बलिदानों अमरों वाली। नई चेतना इसी गर्भ से जन्मेगी गीतों की अंतरध्वनि है वीरों वाली। अमर शहीदों की […]

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बीके शिवानी (BK Shivani) ने रक्षा बंधन को दिया है नया मतलब, आप भी जानिए

आध्यात्मिक शिक्षक बीके शिवानी (BK Shivani) ने रक्षा बंधन के मौके पर इस त्योहार को अलग तरीके से समझाने का प्रयास किया है। ट्विटर पर शिवानी ने लिखा, अहंकार, नफरत, दुःख, अशांति, डर… हर गलत सोच, बोल और कर्म से अपनी रक्षा करें आत्मा और परमात्मा के प्यार का बंधन ही रक्षा बंधन है (लेडीज […]

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आत्माएँ

भटक रही है वो भी जैसे भटकती हैं अतृप्त आत्माएँ.… आत्माओं का भटकना कुछ ने सुना कुछ ने अनुभूत किया है पर निष्कर्ष यही कि भटकती हैं अतृप्त आत्माएँ….. अतृप्ति क्या है? कोई इच्छा कोई आकांक्षा कोई चाह कोई कामना जो पूरी हो न सकी……. अतृप्ति बोझ है सीने का दिल में लगा शूल है […]

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आत्मसम्मान

हर सम्मान से पहले, आत्मसम्मान जरूरी है। विधाता ने जीवन दिया, इस जीवन का मान जरूरी है। आत्मसम्मान के बिना, राजा रंक बना फिरता है। आत्मसम्मान से भरा रंक, राजा की तरह जीता है। आत्मसम्मान यदि मरता है, इंसान मन से मर जाता है। निभाता है वह हर रिश्ता, खुद मन से मर जाता है। […]

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मेरा, केवल मेरा सूरज

आज फिर आया था वह देखो जा छुप रहा है, झुरमुटों में, कहने पर नहीं सुनता, रोकने पर नहीं रुकता वह कहाँ मानता है एक भी बात बताया था मैंने उसे कल रात ठीक नहीं इस तरह हमारा मिलना मुझसे मिलने के लिए तुम्हारा दिन भर जलना हौले से मुस्कुराया था वह। वही, हाँ वही […]

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सूख जाएगी कविता की नदी

युगों बीत गए छलछलाती नदी को देखे बहुत पानी हुआ करता था उसके दिल मे …. अपना प्रेम दे देने को आतुर.. ममता सम्वेदना से लबरेज पूरी तरह स्वाभाविक वास्तविक….. फिर दौर आया रेत के सैलाब का नदी न रहने दी नदी , सुखा दिया छलछल पानी को वैसे ही मरने लगी नदी जैसे भरी […]

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अर्धनारीश्वर

ना तू अबला ना तू सबला ना नर है ना तू नारी । तुझ में ताकत पुरुष के जैसी फिर भी तू बेचारी। तू सम्मान की अधिकारी, फिर भी समाज से बाहर कभी कहो अपनी व्यथा भी, क्या है तेरे अंदर। तुझमें पौरुष कूट-कूट के, ममता भी तुझ में न्यारी । फिर क्यों तुझको भावहीन […]

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