खामोशी से कहना है

  हमें कर्मशील सदा  रहना है बस नदी सा बहते रहना है पथ में आये शूल या पत्थर हमें आगे सदा ही बढ़ना है अनजाने पथ पर भी राही सोच समझ कर चलना है रात जले जो दीप देहरी सुबह उसे तो बुझना है आज हैं साँसें, कल न होंगी एक दिन इसने छलना है […]

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सिर्फ शब्द

ककहरे के साथ ही सीख लिया था, हर शब्द का महत्व हर शब्द की सार्थकता हर शब्द का अपना वज़न तभी तो वाक्य सीधे अर्जुन के तीर की तरह वहीं लगते थे दिल में, सीख लिए थे अंदाजे-बयां भी कि हर सुनने वाला बेसाख्ता कह उठता, वाह इधर कुछ समय से मातमी शब्दों ने हजारों […]

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ब्याहता

तन से गृहस्थन, मन से विरागी कभी चाह उसमें नहीं कोई जागी। हर दिन सबेरे दबे पाँव उठना आँखों के सपनों का चूल्हे पे तपना गर्मी या सर्दी ना महसूस करना सब्ज़ी के टुकड़ों सा चुपचाप कटना नहीं उसको फुरसत, रहे भागी-भागी कभी चाह उसमें नहीं कोई जागी। बिस्तर की सिलवट मन पे छपी है […]

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मौन हूँ, अनभिज्ञ नहीं

‘मौन हूँ, अनभिज्ञ नहीं’, ये करुण कथायें रहने दो मैं स्वयंसिद्ध जीवट नारी, निर्बाध गति से बहने दो। मैं सृजनशक्ति, नित कर्मशील अन्वेषा हूँ, मैं बुद्धिमती अभिमान रहित, मैं स्नेहसिक्त दुर्गा भी मैं, मैं पार्वती अन्तस में मेरे प्रश्न कई, अब प्रश्न मुझे भी करने दो मैं स्वयंसिद्ध जीवट नारी, निर्बाध गति से बहने दो […]

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