विद्या भंडारी की कविता

कुछ चेहरे लुप्त हुए कुछ चेहरे नये जुड़े जीवन के अध्याय में कई नये बदलाव जुड़े। कुछ की दिनचर्या बदली कुछ बहुत एक्टिव हुए। सोच कुछ की हरी हुई कुछ की सुखी धरा हुई । वक्त के नये मोड़ पर सर्द मौसम हो गया पन्ने कुछ उड़ने लगे उम्र की किताब के। सोचूँ आँख बंद […]

Continue Reading

महँगाई पर लिखने वाला क्या सच में निर्धन होता है

क्या करुणा को गाने वाले जीवन में व्याकुल होते हैं? क्या हास्य विधा के महारथी हँसते ही जगते सोते हैं? क्या ओज विधा के लेखक बंदूकें लेकर घर जाते हैं? क्या राणा को गाने वाले चेतक को सैर कराते हैं? महँगाई पर लिखने वाला क्या सच में निर्धन होता है? जो बात चिरागों की करता […]

Continue Reading